russia ukraine war impact on india : रूस के यूक्रेन (russia ukraine war) पर हमला बोलने के बाद यूक्रेन की साउथ दिल्ली में स्थित एंबेसी के अंदर डिप्लोमेट टीवी पर जंग का ताजा सूरते हाल देखते रहे। वसंत विहार में 1993 से है यूक्रेन एंबेसी। यह करीब 800 गज की कोठी से चलती है। यूक्रेन एंबेसी (russia ukraine war in hindi) में कोरोना काल के दौरान तो कामकाज लगभग ठप सा था। थोड़ा बहुत काम वर्क फ्रॉम होम माध्यम से ही हो रहा था। वर्क फ्रॉम होम खत्म होते ही रूस ने ताबड़ तोड़ हमला बोल दिया यूक्रेन पर। यूक्रेन एंबेसी में काम करने वाले एक भारतीय मुलाजिम ने बताया कि एंबेसी का सारा स्टाफ लगभग डरा- सहमा जंग की तस्वीरों को देखता रहा। इसी एंबेसी से ही नेपाल, श्रीलंका, मालदीव वगैरह के काम को भी देखा जाता है।
सोवियत संघ के विघटन के तुरंत बाद भारत ने दिसंबर 1991 में यूक्रेन को एक संप्रभु आजाद देश के तौर पर मान्यता दी थी। यूक्रेन की राजधानी कीव में भारत की एंबेसी मई 1992 में स्थापित की गई थी और यूक्रेन ने फरवरी 1993 में नई दिल्ली में अपना मिशन स्थापित किया। यूक्रेन की एंबेसी की बिल्डिंग के बाहर उनका राष्ट्रीय ध्वज लगा हुआ है। संभवत: सुरक्षा कारणों के चलते आजकल इसके दरवाज आमतौर पर बंद ही रहते हैं।
कोरोना काल से पहले तो यहां वीजा लेने वाले भी पहुंचते थे। फिलहाल यहां सन्नाटा सा रहता है। यूक्रेन के राजदूत Dr Igor Polikha आजकल सुबह से देऱ शाम तक दफ्तर में ही रहते हैं। आज उन्होंने ट्वीट करके भारत से अपील भी कि वह जंग को खत्म करने में अपना योगदान दें। बताते चलें कि यूक्रेन को चाणक्यपुरी में अपनी बिल्डिंग बनाने के लिए स्पेस नहीं मिला है।
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वसंत विहार में और किनकी एंबेसी
इस बीच, वसंत विहार में अजरबैजान की भी एंबेसी है। यह 41 पश्चिमी मार्ग, वसंत विहार पर है। अफ्रीकी देशों जैसे इथोपिया, फीजी, साउथ अफ्रीका,केन्या के अलावा त्रिनिडाड-टोबेगे और गयाना की भी एंबेसी वसंत विहार में है। आर्मेनिया एंबेसी वसंत विहार के करीब आनंद निकेतन में है। वसंत विहार से सटे शांति निकेतन में अल्जीरिया, रवांडा, कोस्टा रिको और यूरोपियन यूनियन की एँबेसी/ दफ्तर हैं।
दरअसल वसंत विहार, आनंद निकेतन और शांति निकेतन में 1960 के दशक के मध्य में सरकारी बाबुओं को घर बनाने के लिए प्लॉट आवंटित हुए थे। वक्त गुजरने के साथ ये सब एरिया राजधानी के बेहद खास बन गए। तब यहां कई देशों की एंबेसी भी खुलने लगीं क्योंकि चाणक्यपुरी में सब देशों को अपनी एँबेसी बनाने के लिए प्लाट नहीं मिल पाते। साउथ दिल्ली के ग्रेटर कैलाश, गॉल्फ लिक्स, मालचा मार्ग वगैरह से भी कुछ देशों की एंबेसी चल रही है।
ग्रेटर कैलाश में नॉर्थ कोरिया के अलावा कंबोडिया और लाओस की भी एंबेसी हैं। जब तक भारत सरकार की तरफ से इन देशों को अपनी एंबेसी बनाने के लिए पर्याप्त लैंड नहीं मिलता तब तक ये पॉश इलाकों से ही अपना काम चलाते हैं। इन्हें समय-समय पर लैंड मिलता रहता है। उदाहरण क रूप में पहले बांग्लादेश उच्चायोग लाजपत नगर-पार्ट तीन में थी। फिर उसे चाणक्यपुरी में स्पेस मिल गया।
कहां रहते पाकिस्तान के राजनयिक
पाकिस्तान उच्चायोग चाण्क्यपुरी में 1960 के दशक में बन गया था। इससे पहले यह तिलक मार्ग पर स्थित पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बंगले से चलता था। दरअसल देश के बंटवारे से पहले लियाकत अली खान तिलक मार्ग के अपने बंगले में रहते थे। वही बंगला 1947 के बाद पाकिस्तान का उच्चायोग बन गया। पाकिस्तान उच्चायोग की नई इमारत बनने के बाद तिलक मार्ग के बंगले में उनके उच्चायुक्त रहने लगे। पाकिस्तान उच्चायोग कैंपस में स्टाफ के लिए कुछ क्वार्टर भी हैं।
ये नेहरु पार्क की तरफ हैं। लेकिन यहां पर काम करने वाले आला अधिकारियों को रेंट पर घर मिलने में दिक्कत होती है। शांति निकेतन मे रहने वाले एक सज्जन ने बताया कि वे शत्रु देश के लोगों को अपने घर किराए पर नहीं देते। जाहिर है, इस कारणसे पाकिस्तानी राजनयिकों को अपना घर लेने के लिए काफी मशक्कत तो करनी पड़ती है।
यह आर्टिकल वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ला की फ़ेसबुक वॉल से सभार प्रकाशित किया गया है।