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उत्तराखंड में महिलाओं को 30% नौकरी कोटा देने वाले विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, यहां जानें डिटेल में सबकुछ

उत्तराखंड विधानसभा ने बीते 30 नवंबर को राज्य सरकार की सेवाओं में स्थानीय महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने वाला विधेयक पारित किया था। यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार के 2006 के एक आदेश पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के हफ्तों बाद आया है, जो समान लाभ प्रदान करता है। उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) विधेयक, 2022 अब राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है।

क्या कहता है बिल?

विधेयक को लेकर सरकार का कहना है कि उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना के कारण राज्य के दुर्गम इलाक़ों में रहने वाले लोग बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत करते हैं ख़ास कर महिलाएँ। यहीं कारण है कि राज्य की महिलाओं का जीवन स्तर दूसरे राज्यों से बेहतर है। वहीं राज्य की महिलाओं का सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व भी काफ़ी कम है।

विधेयक में राज्य में लागू मौजूदा कोटा के साथ सरकारी नौकरी में महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान कर उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है। इस विधेयक का लाभ सिर्फ़ उन महिलाओं को मिलेगा जिनके पास उत्तराखंड का स्थाई निवास प्रमाण पत्र होगा।

आरक्षण स्थानीय प्राधिकारियों, उत्तराखण्ड सहकारी समितियों, जिनमें राज्य सरकार का शेयर 51 प्रतिशत है उसमें मिलेगा। इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा स्थापित विधिक निकाय, बोर्ड या निगम के पदों पर लागू होगा। अगर आरक्षण के बाद भी रिक्त पदों के लिए पर्याप्त महिलाएं उपलब्ध नहीं होती हैं, तो उन्हें योग्य पुरुष उम्मीदवारों से भरा जाएगा।

क्या है हॉरिजॉन्टल आरक्षण?

दिसंबर 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण पर क़ानून की स्थिति स्पष्ट की है। सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने राज्य में कांस्टेबलों के पदों को भरने के लिए चयन प्रक्रिया में आरक्षण के विभिन्न वर्गों को लागू करने के तरीके से उत्पन्न होने वाले मुद्दों से निपटाया है।

इस सरल शब्दों समझाए तो, जहां एक वर्टिकल आरक्षण कानून के तहत निर्दिष्ट प्रत्येक समूह के लिए अलग से लागू होता है, वहीं हॉरिजॉन्टल आरक्षण हमेशा प्रत्येक वर्टिकल श्रेणी के लिए अलग से लागू होता है, न कि पूरे मंडल में।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को वर्टिकल आरक्षण कहा जाता है। हॉरिजॉन्टल आरक्षण का तात्पर्य लाभार्थियों की अन्य श्रेणियों जैसे महिलाओं, दिग्गजों, ट्रांसजेंडर समुदाय और विकलांग व्यक्तियों को वर्टिकल श्रेणियों के माध्यम समान अवसर दिए जाने का प्रयास किया जाता है।

उदाहरण के लिए, यदि महिलाओं के पास क्षैतिज कोटा 50 प्रतिशत है, तो प्रत्येक वर्टिकल कोटा श्रेणी में चयनित उम्मीदवारों में से आधे को अनिवार्य रूप से महिलाएं होना चाहिए – यानी, सभी चयनित अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों में से आधा महिला होना चाहिए, और इसी तरह अनारक्षित या सामान्य का आधा श्रेणी में महिलाएं होनी चाहिए। यह भी पढ़ें : जम्मू कश्मीर ने भारतीय सेना ने इस साल 189 आतंकियों को मार गिराया

अदालत ने क्या कहा?

जुलाई 2006 में, उत्तराखंड ने राज्य की स्थाई महिलाओं को उनकी जाति, पंथ, जन्म स्थान, मूल स्थान और सामाजिक स्थिति के बावजूद 30 प्रतिशत हॉरिजॉन्टल आरक्षण प्रदान करने के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया।

पवित्रा चौहान, अनन्या अत्री और अन्य द्वारा उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने से पहले इस साल तक यह आदेश लागू था। ये अनारक्षित श्रेणी की राज्य के बाहर की महिलाएं थीं जो राज्य सिविल परीक्षा में शामिल हुई थीं। उन्होंने दलील दी कि राज्य के अधिवास वाली महिला उम्मीदवारों के लिए प्रारंभिक परीक्षाओं में कट-ऑफ से अधिक अंक हासिल करने के बावजूद, उन्हें मुख्य परीक्षा में बैठने के अवसर से वंचित कर दिया गया।

उन्होंने शासनादेशों को इस आधार पर चुनौती दी कि वे राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड संयुक्त सेवा और वरिष्ठ सेवा के लिए आयोजित परीक्षा में महिलाओं के स्थाई निवास की स्थिति के आधार पर हॉरिजॉन्टल आरक्षण प्रदान करते हैं। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आदेश पर रोक लगा दी और कहा कि कोटा को महिलाओं के लिए उनके अधिवास या निवास स्थान के बावजूद हॉरिजॉन्टल आरक्षण के रूप में माना जाना चाहिए। यह भी पढ़ें : उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में काली नदी पर काम कर रहे भारतीय मज़दूरों पर नेपाल की ओर से पत्थरबाजी

इसके बाद मामला शीर्ष अदालत में गया। उच्च न्यायालय को चुनौती देते हुए, उत्तराखंड सरकार ने दलील दी थि कि राज्य के इलाके और जलवायु ने अपने युवाओं को आजीविका की तलाश में कहीं और पलायन करने के लिए मजबूर किया, घर चलाने और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी महिलाओं पर छोड़ दी। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं को दिए इस आरक्षण का बचाव किया। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने नैनीताल हाईकोर्ट के स्टे को हटाने का फ़ैसला दिया था।

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