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America : मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं…

Shubham Singh by Shubham Singh
June 2, 2020
in ओपिनियन
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⬛ जे सुशील
अमेरिका में जहां कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या एक लाख के पार हो चुकी है वहीं देश का एक शहर काले लोगों के विरोध प्रदर्शनों में जल रहा है. मुद्दा पुलिस की क्रूरता का है जिसमें एक काले अमेरिकी जॉर्ज फ्लायड की मौत हो गई है. इस घटना में चार पुलिसकर्मी छियालीस साल के जॉर्ज फ्लायड को कार से उतारते हैं और हथकड़ी लगा देते हैं. हथकड़ी लगाए जाने के बाद जॉर्ज सवाल पूछने की कोशिश करता है और इतने में ही एक पुलिसवाला उसे नीचे मुंह के बल गिरा देता है. जॉर्ज छह फीट के भारी भरकम शरीर के व्यक्ति हैं. उन्हें सड़क पर गिराने के बाद एक पुलिसवाल उनकी गर्दन पर अपने घुटने टिका कर बैठ जाता है. जॉर्ज बार बार कहते हैं कि उन्हें खड़ा किया जाए. वो सांस नहीं पा रहे हैं. लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता. यहां तक कि इस घटना का वीडियो बना रहे लोग भी पुलिस से कहते हैं कि वो आदमी मर जाएगा लेकिन पुलिसकर्मी न तो अपना घुटना उठाता है और न ही जॉर्ज को राहत देता है.
थोड़ी देर में जॉर्ज की फंसी फंसी आवाज़ आती है. आई कांट ब्रीथ यानी कि मैं सांस नहीं ले पा रहा…मैं सांस नहीं ले पा रहा और फिर वो शिथिल हो जाते हैं. लेकिन पुलिसवाला फिर भी अपना घुटना नहीं हटाता. मेडिकल एंबुलेंस आती है और तब भी पुलिसवाले को अपना घुटना जॉर्ज की गर्दन पर रखे देखा जा सकता है. मेडिकल टीम जॉर्ज को मौके पर ही मृत घोषित कर देती है. घटना का वीडियो वायरल हो जाता है और प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं.
दूसरे दिन चारों पुलिसकर्मियों को बर्खास्त किया जाता है लेकिन कोई मामला दर्ज नहीं होता. तब विरोध शुरू होते हैं और विरोध में कई इमारतें शहर की जला दी जाती हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ट्वीट करते हैं और कहते हैं कि मामले की जांच होगी. प्रदर्शनकारी संतुष्ट नहीं है. दो दिन के बाद उस अधिकारी पर मामला तय होता है जिसने जॉर्ज फ्लायड की गर्दन पर घुटना रखा था. प्रदर्शनकारी मांग करते हैं चारों पुलिसवालों पर हत्या के मुकदमे का.
शहर में आगजनी तोड़फोड़ जारी है. ट्रंप कहते हैं कि लूट होगी तो गोली मारने की छूट होगी. यानी कि पुलिस कार्रवाई करेगी. ये क्लासिक तरीका है नस्लभेद का. अमेरिका में काले लोगों के खिलाफ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. 2017 की बात है. हमें सेंट लुईस आए हुए महीना भर ही हुआ था. हमारे घर के सामने की सड़क पर ज़ोरदार प्रदर्शन होने लगे थे. मैंने पता किया तो मालूम हुआ कि मामलामाइकल ब्राउन की मौत का. माइकल ब्राउन एक काला अमेरिकी जिसे पुलिस वाले ने गोली मारी थी. कुछ साल पहले हुई इस घटना में कोर्ट ने अब उस गोरे अफसर को बरी कर दिया था. जिसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे. मेरे घर के सामने टूरिस्ट इलाके में कई दुकानों के शीशे तोड़ दिए गए थे.
उसके बाद से लगातार अमेरिका में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती ही रही हैं और ऐसे वीडियो देखने को मिलते रहे हैं जिनमें काले लोगों पर पुलिस की कार्रवाई को देखा जा सकता है. कई मामलों में सीधे गोली मारने के भी वीडियो सामने आए हैं. पिछले दिनों एक काले डिलीवरी ब्वॉय को बेवजह गाली देते हुए एक गोरे व्यक्ति का वीडियो वायरल हो गया था. फेड एक्स ने काले डिलीवरी ब्वॉय को ही नौकरी से निकाला लेकिन विरोध के बाद दोबारा उसे अच्छी नौकरी दी गई.
अमेरिका में गोरे और काले के भेद को समझने के लिए थोड़ा इतिहास में जाने की ज़रूरत है. अमेरिका उन देशों में है जहां काले और गोरे लोगों के बीच आधिकारिक रूप से भेदभाव था1964तक. जी हां करीबन साठ साल पहले तक. 1964में कानून बनाकर इसे खत्म किया गया लेकिन उससे पहले और बाद तक गोरे समूहों ने काले लोगों पर भीषण अत्याचार किए हैं.
सबसे बड़ा वाकया माना जाता है1919का शिकागो में जहां एक काला लड़का लेक मिशीगन में तैर रहा था और तैरते हुए वो पानी में उस इलाके में चला गया जो गोरे लोगों के लिए निर्धारित था. गोरे लड़कों ने इस काले लड़के को पानी में ही पत्थरों से मारना शुरू किया और पत्थरों से घायल होकर काले लड़के की पानी में डूबकर ही मौत हो गई. मौके पर पुलिस पहुंची तो उन्होंने गोरे लड़कों को गिरफ्तार नहीं किया. इसके बाद हुई हिंसा और आगजनी में काले गोरे दोनों मरे लेकिन एक सुनियोजित आगजनी में काले लोगों के एक इलाके में आग लगाई गई जिसमें हज़ार से अधिक लोग बेघर हो गए. इस घटना को अमेरिकी इतिहास में रेड समर के नाम से याद किया जाता है.
ये वो दौर था जब कालों और गोरों के लिए स्कूल, रेस्तरां, फिल्म देखने की जगहें सबकुछ अलग अलग हुआ करते थे. दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक चीज़ें ऐसी ही रहीं और 1954में कोर्ट के एक आदेश ने स्कूलों में ये नियम बनाया कि काले गोरे सभी एक ही स्कूल में पढ़ेंगे. इसका जम कर विरोध हुआ गोरे लोगों की तरफ से.
खैर इसके बाद मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में आंदोलन हुआ और अंतत 1964में ये अलगाव की नीति बंद की गई. नीतिगत रूप से बदलाव भले ही हो गया लेकिन काले लोगों के प्रति भेदभाव अभी भी अमेरिकी समाज में व्याप्त है और जब तक समाज में बदलाव जड़ों तक नहीं पहुंचेगा जॉर्ज फ्लायड जैसी घटनाएं होती रहेंगी.
जे सुशील की फेसबुक से
Photoh – The Boston Blobe

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