महामारियाँ रोकनी हैं, तो जैवविविधता बचाइए

importance of biodiversity against pandemic
स्कंद शुक्ला।
जानवरों के प्रति तीन मनोभावनाएँ रखने वाले लोग हैं। पहले वे जो इनसे प्रेम करते हैं। दूसरे वे जो इनसे डरते हैं। तीसरे वे जो इनके प्रति तटस्थ हैं। प्रेम-भय-तटस्थता के सम्मिश्रण से सभी व्यक्तियों में मनोभाव निर्मित हैं। परिस्थिवश इन तीनों मनोस्थितियों में घटाव-बढ़ाव हुआ करता है। लेकिन वर्तमान कोविड-पैंडेमिक हमसे जानवरों के प्रति गम्भीर ढंग से सोचने पर आग्रह कर रही है। 
मनुष्य की सत्तर प्रतिशत बीमारियाँ जंगली जानवरों से आयी हैं। फ़्लू सूअरों और चिड़ियों से मिला है , टीबी गायों-साँड़ों से। एचआईवी बन्दरों से हममें फैला है , इबोला चिम्पैंज़ियों और चमगादड़ों से। लाखों सालों से विषाणु व जीवाणु जानवरों से मनुष्यों में आते रहे हैं। इंसान दरिन्दे या परिन्दे से सम्पर्क करता है : उसे पालता है या मारता है। निरन्तर चलते चले आ रहे पालन-मारण के दौरान मानव-देह पशु-देह से सम्पर्करत हो जाती है। नतीजन कीटाणु पुराने शरीर को छोड़कर नये शरीर में प्रवेश कर जाता है।

wwf report on pandemic pathway

जंगल कट रहे हैं , उन्हें बचाइए। लेकिन जंगल बचाने के साथ-साथ यह भी सोचिए कि किस तरह बढ़ती जा रही मानव-जनसंख्या जंगल से बचकर जिएगी। पृथ्वी के हर हिस्सा , हर कोना मानवकृत हुआ पड़ा है। हर जगह मनुष्य के पदचिह्न हैं , जिनके नीचे जीव-जन्तुओं की लाशें हैं। मनुष्य प्रकृतिस्थ नहीं रहा अब , प्रकृति मनुष्यीकृत हो चली है। पौने आठ बिलियन इंसानों ने पूरे ग्रह को कृषिभूमि बना डाला है — उसे दुह डाला है , मथ डाला है। मानवों की आबादी से अधिक आबादी केवल मुर्गियों की है , ये पौने चौबीस बिलियन हैं। इनके पीछे पौने पाँच बिलियन पर मवेशी , सूअर , भेड़ें और बकरियाँ हैं। बाक़ी जानवरों की क्या पूछ ! जंगली जानवर तो दहाई-सैकड़ों-हज़ारों में सिमटे पड़े हैं ! 
मनुष्य केवल पृथ्वी से जंगल नहीं काट रहा , वह उसे खेत बना रहा है। वह केवल बाघ को गोली नहीं मार रहा , वह बाघ की जगह बकरी को दे रहा है। जानवरों की जैवविविधता नष्ट हो रही है , जंगलों और उनमें रहने वालों की जगह खेत और फ़ार्म ले रहे हैं।

spillover phenomenon by wwf

जंगल को खेत बनने से बचाना और बाघ की जगह बकरी को देने से रोकना कोविड-19 जैसी महामारियों को थामना है। खेत जितना बढ़ता जाएगा , बीमारी का ख़तरा उसी अनुपात में बढ़ता रहेगा। जैवविविधता जितनी घटेगी , महामारियों की आशंका में उतनी वृद्धि होगी। 
अगर खेत निर्बाध बढ़ता गया , तो भविष्य भयावह है। परसों उसमें भुट्टा उगा था , कल मुर्गी उगी , कल इंसान उगेगा। 
(स्कन्द शुक्ला के फेसबुक वॉल से) 

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