कोरोना वायरस पड़ताल : कहीं बेड पर पड़े हैं शव तो कहीं इलाज के लिए मांगे जा रहे हैं लाखों रुपए

No Covid test if patient is dead, Delhi govt says in new ...

 दिल्ली में कोरोना का उपचार कराने के लिए रोगियों को अस्पताल दर अस्पताल भटकना पड़ रहा हैं। दिल्ली के कोविड स्पेशल ‘एलएनजेपी’ अस्पताल में तो शवों की अदला-बदली तक हो गई। वहीं निजी अस्पतालों पर कोरोना बेड की ब्लैक मार्केटिंग के आरोप लगे हैं। (21:35)
लोकनायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल में कोरोना संक्रमित बुजुर्ग मरीज के लापता होने का मामला सामने आया है। कोरोना संक्रमित 65 वर्षीरू बुजुर्ग को एक जून को उनके बेटे नवीन (परिवर्तित नाम) ने एलएनजेपी अस्पताल भर्ती कराया था। रोगी को जनकपुरी के माता चानन देवी अस्पताल से एलएनजेपी अस्पताल में रेफर किया गया था।

नवीन ने आरोप लगाते हुए कहा, “मैं कई दिन तक अपने पिता के लिए घर से खाना लाता रहा, लेकिन खाना लौटा दिया जाता था। मैने अपने पिता के बारे में पूछताछ की, लेकिन अस्पताल ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।”

नवीन ने कहा, “मैं अस्पताल कर्मचारियों के साथ सभी वार्ड चेक कर चुका हूं, लेकिन मुझे यहां मेरे पिता नहीं मिले।”

नवीन ने कहा, “पहले मेरे पिता वॉर्ड नंबर- 31 में थे फिर उन्हें आईसीयू-4 में शिफ्ट किया गया था, लेकिन वह वहां भी नहीं हैं। उनके पास फोन भी नहीं हैं। मैंने पुलिस में भी शिकायत की है ताकि प्रशासन मेरे पिता की खोजबीन कर सके।”

वहीं अनिल कुमार नामक एक युवक परिजनों के साथ रात भर अपनी बीमार भाभी को लेकर अस्पतालों के चक्कर काटता रहा। सुबह होते होते ही रोगी ने दम तोड़ दिया।

अनिल ने कहा, “सबसे पहले हम गंगाराम अस्पताल गए। यहां अस्पताल ने रोगी का उपचार करने और बेड देने से इनकार कर दिया। हमें कहा गया कि सभी बेड फुल हैं। इसके बाद हम नजदीक के दूसरे अस्पताल बीएल कपूर गए, लेकिन वहां भी बेड नहीं मिला।”

अनिल ने कहा, “थोड़ी देर बाद हम आरएमएल अस्पताल पहुंच गए। यहां हमने रोगी को भर्ती करने को कहा लेकिन अस्पताल ने बेड न होने की बात कहकर हमें वहां से जाने को कहा। जब हमने दोबारा अपील की तो अस्पताल कर्मचारियों ने बदतमीजी की और हमें बाहर निकालने के लिए अस्पताल के अन्य लोगों को बुला लिया।”

अनिल के मुताबिक इस दौरान दिल्ली सरकार के ऐप पर भी अस्पताल के बेड ढूंढे, लेकिन ऐप पर बेड दिखाए जाने के बावजूद अस्पतालों ने बेड नहीं दिए। दिल्ली सरकार की हेल्प लाइन लाइन नंबर पर भी फोन किया गया लेकिन कोई मदद नहीं मिली।

अनिल ने कहा, “कई निजी अस्पतालों के चक्कर काटने के उपरांत हम सफदरजंग हॉस्पिटल पहुंचे। यहां रोगी को भर्ती कर लिया गया। लेकिन 1 घंटे तक रोगी को कोरोना वार्ड के ही रखा गया। इस दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने से रोगी की मृत्यु हो गई।”

सफदरजंग अस्पताल की एमएस डॉ. बलविंदर ने इस मामले पर कहा, “आप अस्पताल के पीआरओ से बात करें। मैं इस विषय पर बात करने के लिए अधिकृत व्यक्ति नही हूं।”

उधर अस्पताल के पीआरओ ने इस मामले पर टिप्पणी करने से ही इनकार कर दिया।

अपने एक रिश्तेदार का उपचार जीटीबी अस्पताल में करवा रहे विशाल ने कहा, “कोरोना उपचार के दौरान हमारे रिश्तेदार की अस्पताल में ही मृत्यु हो गई। लेकिन 3 घंटे तक हमारे रिश्तेदार के शव को अस्पताल प्रशासन ने हाथ नहीं लगाया। शव वहीं बेड पर पड़ा रहा। 3 घंटे बाद रिश्तेदारों और अस्पताल के एक अटेंडेंट ने शव को वहां से हटाकर उसे कपड़े में लपेटा।”

सुनील सिंह (परिवर्तित नाम) एक कोरोना रोगी ने कहा, “कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद मैं करोल बाग के समीप बनाए गए एक बड़े प्राइवेट कोरोना अस्पताल में गया। हालांकि अस्पताल ने मुझे बेड देने से इनकार कर दिया। दोबारा अस्पताल से अपील की तो अस्पताल ने साढ़े चार लाख रुपए जमा कराने को कहा। इसमें से ढाई लाख रुपये क्रेडिट कार्ड के जरिए और 2 लाख रुपये कैश मांगे गए। अब इस निजी अस्पताल के ऊपर दिल्ली सरकार ने एक अन्य मामले में एफआइआर भी दर्ज कराई है।”

निजी अस्पतालों द्वारा कोरोना के उपचार के लिए लाखों रुपए मांगे जाने की बात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के संज्ञान में भी लाई गई है। इस विषय पर मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि कोरोना बेड की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कदम उठाने जा रहे हैं।

वहीं एलएनजेपी में ही दो शवों की अदला बदली का भी मामला सामने आया है। असलम ( परिवर्तित नाम) नाम के दो व्यक्ति अस्पताल में कोरोना का इलाज करवाने के लिए भर्ती हुए थे,लेकिन दोनों की ही मृत्यु हो गई। इसके बाद एक जैसे नाम होने के कारण मृतकों के शव शवों की अदला बदली हो गई और गलत परिवारों को शव सौंप दिए गए, जिनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। बाद में इस गलती का पता लगने पर अस्पताल और पुलिस ने परिजनों पर ही गलत शिनाख्त करने का आरोप लगाया है।

अस्पताल प्रशासन ने इस घटना को लेकर कहा, “एक नाम ही के दो व्यक्तियों की लाश की अदला-बदली हुई, क्योंकि मरने के बाद चेहरा बिगड़ने लगता है, साथ ही उनकी चमड़ी अकड़ने लगती है। परिजनों को भी जब बॉडी दिखाई तो वो इस क्षति की वजह से इमोशनली परेशान थे, साथ ही कोरोना के डर से उन्होंने दूर से ही लाश देखकर तस्दीक कर दी। दोनों बॉडी की कद काठी भी एक जैसी ही थी, इसलिए बॉडी पहचानने में गलती हुई।”

Source – IANS Hindi

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